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हम हर घर,हर गांव में छांछ छोळेंगे और उसकी आवाज देहरादून विधानसभा-----
नमस्कार आप सभी को उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई।
20 वर्ष का उत्तराखण्ड अपनी मुख्य पहचान पहाड़ों के विकास को लेकर कभी भी गंभीरता से कार्य करता हुआ नजर नहीं आया।
जन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए बनी सभी योजनाओं का लाभ अधिकतर मैदानी क्षेत्रों व कुछ पहाड़ी शहरों,जिला मुख्यालयों के आसपास तक ही सीमित रहता है।
"छांछ छोळे पहाडों मा,घियूं की मांणि देहरादूण"।
आज भी हाल यही है पहाड़ों के लोग विकास के लिए संघर्ष कर रहे हैं,और विकास के लिए बनी अधिकतर योजनाओं का लाभ शहरी क्षेत्रों के लोग ले रहे हैं।
जब गांवों तक सड़क नही है तो,सरकारी एंबुलेंस सेवा का उन गांवों को क्या लाभ।
मंडियों का क्या लाभ उन पहाड़ी किसानों के लिए जो अपने कृषि उपजों को बिना परिवहन के सही समय पर वहां तक नहीं पहुंचा पाते,वे व्यापारिक फसलों,फलों,सब्जियों जिन पर बहुत मेहनत लगती है को क्यों अपने खेतों में उगाए।
दुग्ध डेयरी विकास का उन गांवों के किसानों को क्या लाभ जिनके दूध उत्पादन की गुणवत्ता सर्वोत्तम है परन्तु मांग न होने के कारण उत्पादन पारिवारिक आवश्यकता तक ही सीमित रखते हैं।
पहाड़ों में उगाए जाने वाली बहुत सी उपजों,पौष्टिक दालों,मिर्च,मंडुवा,आदि बहुत सी बहुपयोगी फसलों,वस्तुओं पर सरकारों द्वारा कोई नीति नही बनती।
व्यापारियों द्वारा सस्ते दामों पर इन उपजों को पहाड़ के मेहनती किसानों से खरीद कर आगे उचित मूल्यों पर बेच दिया जाता है।
सरकार केवल गेहूँ,धान,व गन्ने की फसलों तक ही सीमित है जोकि केवल मैदानी क्षेत्रों में ही सर्वाधिक मात्रा में उगाया जाता है।
ऐसे बहुत से विषय है, जिन पर उत्तराखण्ड के छोटे से मैदानी भू-भाग को छोड़कर बड़े से पहाड़ी हिस्से पर यहां की सरकारों को ध्यान देना होगा।
गलती हमारी भी है हम लोग शहरों की चकाचौंध जीवनशैली-बडे-बड़े शापिंग मॉल,होटल,परिवहन सुविधाओं,मैट्रो,खान-पान-पिज्जा,बर्गर आदि को देखकर पूर्ण विकास समझ बैठे और उनकी ओर आकर्षित होकर शहरों की ओर भाग रहे हैं।
हमने पलायन कर यह सिद्ध किया कि विकास तू पहाड़ नही चढ पा रहा तो न सही हम ही तेरी ओर आते हैं।
हम पहाड़ों में रहकर छांछ जरूर छोळ रहे हैं,परंतु घियूं की मांणि भी देहरादून स्वयं ही पहुंचा रहे हैं।
पहाड़ों का पूर्ण विकास तभी संभव है जब हम हर घर,हर गांव में छांछ छोळेंगे और उसकी आवाज देहरादून विधानसभा,सचिवालय तक जाए और वो दौड़े-दौड़े आए घियूं की मांणि लेने। तात्पर्य यह है कि हमें इन पहाड़ों में रहकर प्रत्येक घरों प्रत्येक गांवों से आवाज देनी होगी कि "भै रे" इन ऊंचा पहाड़ों मा हम भी हैं, हमारी ओर भी ध्यान दो,फिर देखो घियूं की मांणि (वोट के खातिर) कैसे नही पहुंचेंगे पहाड़ व उसके बदले कैसे नही देते हमें हमारी घी का मूल्य यानि सड़क,बिजली,शिक्षा,स्वास्थ्य आदि।
भगवान की पहचान
हम बचपन से ही भगवान और देव-देवियों की प्रार्थना करते आ रहे हैं, उनकी भक्ति करते आ रहे हैं और इसी तरह अलग-अलग तरीके से भगवान एवं धर्म से जुड़े हुए हैं। फिर भी, हम पूछते हैं कि भगवान कौन हैं? क्या हकीकत में भगवान का अस्तित्व हैं? क्या वास्तव मे भगवान हैं? कहाँ हैं भगवान? क्या किसी ने भगवान को देखा हैं या उनका अनुभव किया हैं? भगवान का पता क्या हैं? यह ब्रह्मांड किसने बनाया? क्या भगवान के अस्तित्व का कोई सबूत हैं? क्या ये दुनिया भगवान चलाते हैं? भगवान का न्याय क्या है? हम भगवान के साथ अभेद कैसे हो सकते हैं? क्या मैं भगवान का प्रेम पा सकता हूँ? क्या भगवान से की हुई हमारी प्रार्थनाओं का हमें ज़वाब मिलता हैं? क्या भगवान एक है या अनेक हैं? क्या भगवान के प्रेम को महसूस कर सकते हैं? भगवान और विज्ञान के बिच कोई सबंध हैं? नि:शंक भरे विकसित दिमाग़ में ऐसे कई प्रश्न उठते हैं। आखिरकार भगवान को जानने की आपकी खोज ही आपको यहाँ ले आई हैं!
जब हम इस विशाल ब्रह्मांड को देखते हैं, तब हम एक अद्भुत शक्ति का अ भव करते हैं जो सभी को संतुलित रखती हैं ऐसा प्रतीत होता हैं। दूसरा, जब हम सुंदर प्रकृति को देखते हैं, हम इसकी प्रशंसा करते हैं और उसके साथ आत्मीयता का अनुभव करते हैं। फिर भी हम कुदरती आपदा, बीमारी, गरीबी, अत्यन्त दुःख, अन्याय और हिंसा से व्याकुल होते हैं। एक ओर हम देखते हैं किस तरह मनुष्यों ने विज्ञान और तकनिकी में तरक्की की है और दूसरी तरफ हम देखते हैं कि किस तरह ज़्यादा से ज़्यादा लोग तनाव, डिप्रेसन और चिंता से जूझ रहे हैं। दुनिया के प्रति ऐसा दोतरफा दृष्टिकोण कई सारे प्रश्न खड़े करता है जैसे कि - भगवान कहाँ हैं? क्या प्रार्थना में शक्ति है? भगवान का प्रेम कहाँ खो गया? क्यों इतना अन्याय है? क्यों अच्छे कर्म करनेवाले लोगों को सहन करना पड़ता हैं, जबकि दूसरे लोग जो गलत करते हैं फिर भी आज़ाद घुमते हैं?
तो क्या भगवान हैं? हाँ, वास्तव में भगवान हैं! उतना ही नहीं बल्कि भगवान तो आपके अन्दर ही हैं। परम पूज्य दादाश्री कहते हैं “गोड इज इन एवरी लिविंग क्रिएचर, वेधर विज़ीबल और इनविज़ीबल।”
बहुत लोग परम पूज्य दादाश्री के पास ऐसे प्रश्न लेकर आते थे और न केवल संतोषजनक समाधान पाया बल्कि भीतरवाले भगवान का भी अनुभव उन्होंने किया। हम आशा करते हैं आप भी ऐसा ही अनुभव प्राप्त करेंगे जब आप भगवान को खोजने
आचरण में सुधार करते रहने से ग्रहदशा में सुधार आता जाता है, हमारा आचरण ही उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि का मार्ग है।
१) धर्मस्थल, उपासना स्थल🛕 मंदिर आदि की सफाई करने से बृहस्पति बहुत अच्छे फल देगा।
२) अपनी झूठी थाली या बर्तन उसी जगह पर छोड़ना -सफलता मे कमी..।
३) झूठे बर्तन को उठाकर जगह पर रखते है या साफ़ कर लेते है तो चन्द्रमा , शनि ग्रह ठीक होते है।
४) देर रात जागने से चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है।
५) आगंतुक को या अपने ही घर के सदस्य को स्वच्छ जल प्रस्तुत करने से राहू का बुरा प्रभाव कम होता जाता है।
६) पाकशाला, रसौड़ा (रसोई) को मलिन रखने से मंगल ग्रह सम्बधी समस्याएं आती हैं, रसोई हमेशा साफ़ सुथरी रखेंगै तो मंगल ग्रह ठीक होता जाता है।
७) घर में सुबह उठकर पौधों को जल देने का नियम बुध, सूर्य, शुक्र और चन्द्रमा मजबूत होता है।
८) पैर घसीट कर न चलें इससे का राहू का बुरा प्रभाव होता है।
९) जो स्नानघर (बाथरूम) में वस्त्र इधर-उधर फेंक देते है, बाथरूम में पानी बिखराकर आ जाते है तो चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है।
१०) जो बाहर से आकर अपने चप्पल , जूते , मोज़े इधर उधर फेंक देते है उन्हें शत्रु परेशान करते है। पादुकाओं को बायीं ओर ठीक से उतारे।
११) राहू और शनि ठीक फल नही देते है जब हम बिस्तर नहीं समेटते। फैला हुआ बिस्तर, बिस्तर पर सलवटे ,चादर, तकिया यदि अव्यस्थित है तो धन नाश निश्चित है।
१२) चीख चिल्ला कर बोलेने से शनि का दुष्फल मिलता है।
१३) वरिष्ठजनों/वृद्धजनों के आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि बढती है तथा गुरू ग्रह अच्छा होता है। अतः वरिष्ठजनों को सम्मान दें, उनकी आवश्यकता को समझें।
१४) दो झाडुओं (brooms) को कभी भी एक संग न रखें कलह का कारक है यह और कार्य के उपरांत उनको ऐसे स्थान पर रखें कि झाड़ू किसी भी क्षण दिखाई न दे। (वास्तु के अनुसार झाड़ू को दक्षिण पश्चिम दिशा के किसी कपाट के पीछे रखना उचित स्थान है)
१५) कपाट (doors) कभी पांव से बन्द न करें न ही खोलें और दहलीज पर पांव न पटकें (चप्पल न झाड़ें)
१६) प्रातः काल आंगन में जल छिड़कें ( जल हल्दी मिश्रित हो तो अति उत्तम रहेगा)
अपने परिजनों को नेगीदा लखोरिया की यह बात समय समय पर बताते रहें।
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श्रेय- नेगी दा लखोरिया
गांव- मल्ला लखोरा, अल्मोड़ा, उत्तराखंड
शुद्ध प्रेम की परिभाषा
प्रेम शब्द का इस हद तक दुरुपयोग हुआ है कि हरएक कदम पर इसके अर्थ को लेकर प्रश्न खड़े होते है। यदि यह सच्चा प्यार है तो, यह ऐसा कैसे हो सकता है?
सिर्फ ज्ञानीपुरुष ही जो केवल प्रेम कि जीवंत मूर्ति हैं, हमें प्रेम कि सही परिभाषा बता सकते हैं। सच्चा प्रेम वही है जो कभी बढ़ता या घटता नहीं है। मान देनेवाले के प्रति राग नहीं होता, न ही अपमान करनेवाले के प्रति द्वेष होता है। ऐसे प्रेम से दुनिया निर्दोष दिखाई देती है। यह प्रेम मनुष्य के रूप में भगवान का अनुभव करवाता है।
संसार में सच्चा प्रेम है ही नहीं। सच्चा प्रेम उसी व्यक्ति में हो सकता है जिसने अपने आत्मा को पूर्ण रूप से जान लिया है। प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रेम है। पढ़िए और जानिए शुद्ध प्रेम के बारे में.......
चिंता करना कैसे बंद करें: चिंता और तनाव से मुक्त बनें
चिंता क्या है?चिंता क्यों होती है?चिंता के परिणाम क्या हैं?चिंता करना कैसे बंद करें? ज्ञानीपुरुष दादा भगवान द्वारा दिए गए इन सभी प्रश्नों के जवाब यहाँ पर रखें गए हैं।
चिंता से काम बिगड़ते हैं, यह कुदरत का कानून है। चिंतामुक्त रहने से काम अच्छी तरह से हो पाता है। संपन्न और समाज में महत्वपूर्ण व्यक्ति अत्याधिक चिंता और तनाव से ग्रस्त रहते हैं। मजदूरों को उतनी चिंता नहीं होती, वे आराम से सोते हैं जबकि उनके मालिकों को नींद की गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। जो चिंता करते हैं, उनकी धन-संपति भी चली जाती है।
चिंता क्या है?सोचने में नुक़सान नहीं है लेकिन जब सोचने का सिलसिला हद से आगे बढ़ता है तब चिंता शुरू हो जाती है। जब ऐसा होने लगे तो सोचना बंद कर दें।
यदि यह पता चल जाए कि वास्तव में "कर्ता कौन" है तो चिंता बंद हो जाएगी....
कर्म क्या है ? : कर्म का विज्ञान
कर्म क्या है ? क्या अच्छें कर्म करने से गलत कर्मों का असर खत्म हो जाता है ? भले लोगों को दुःख क्यों उठाने पड़ते हैं ? कर्म बंधन कब और कैसे रूकता है ?
जब तक आप कर्म बांधते हैं, तब तक आपके लिए हमेशा पुनर्जन्म है ही। अगर आप को कर्म बंधन होगा तो अगले जन्म में आपको उसके परिणाम भुगतने ही पड़ेगें। क्या इस सच्चाई से कि भगवान महावीर को अगला जन्म नहीं लेना पड़ा, यह सिद्ध नहीं होता कि रोज़मर्रा का जीवन जीते हुए भी कर्म बंधन न हो?
ऐसा विज्ञान है कि रोज़मर्रा का जीवन जीते हुए भी आप को कर्म बंधन न हो। आत्मविज्ञानी परम पूज्य दादाश्री ने दुनिया को यह"कर्म का विज्ञान"दिया है।
जब आप इस विज्ञान को पूरी तरह से समझ जाएँगें तो आप की भी मुक्ति हो जाएगी।
Garhwal and Kumaun Border,
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Post Office Bandarkot, Patti Khatli, Block Birokhal, District - Pauri Garhwal, Uttarakhand - 246276, India
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